राज्यपाल के कार्य एंव शक्तियां
नमस्कार मित्रों, आज आपको हमारे द्वारा इस लेख में ” राज्यपाल के कार्य और शक्तियां “ के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाएगी . जैसा की आपको पता ही होगा की राज्य में राज्यपाल का पद सबसे बड़ा होता है और राज्यपाल ही राज्य का प्रथम नागरिक भी होता है . इसके साथ ही साथ एक राज्यपाल की नियुक्ति के बारे में भी आपको जानकारी दी जाएगी .
अगर आपके मन में राज्यपाल के सम्बन्ध में कोई भी सवाल है जैसे की – राज्यपाल की नियुक्ति कौन करता है , राज्यपाल के भत्ते और सैलरी , राज्यपाल की शक्तियाँ , राज्यपाल के मुख्य कार्य इत्यादि . तो आपको सरे सवालों का विस्तार से विवरण नीचे की और दिया जा रहा है .
राज्यपाल की नियुक्ति
राज्यपाल न तो जनता द्वारा सीधा चुना जाता है और न ही अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति की तरह संवैधानिक प्रक्रिया के तहत उसका चुनाव होता है।उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति के मुहर लगे आज्ञापत्र के माध्यम से होती है। इस प्रकार वह केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत होता है लेकिन उच्चतम न्यायालय की 1979 की व्यवस्था के अनुसार, राज्य में राज्यपाल का कार्यालय केंद्र सरकार के अधीन रोजगार नहीं है। यह एक स्वतंत्र सवैधानिक कार्यालय है और यह केंद्र सरकार के अधीनस्थ नहीं है। संविधान में वयस्क मताधिकार के तहत राज्यपाल के सीधे निर्वाचन की बात उठी लेकिन संविधान सभा ने वर्तमान व्यवस्था यानी राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति को ही अपनाया जिसके
निम्नलिखित कारण हैं:
- राज्यपाल का सीधा निर्वाचन राज्य में स्थापित संसदीयव्यवस्था की स्थिति के प्रतिकूल हो सकता है।
- सीधे चुनाव की व्यवस्था से मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है।
- राज्यपाल सिर्फ संवैधानिक प्रमुख होता है इसलिए उसके निर्वाचन के लिए चुनाव की जटिल व्यवस्था और भारी धन खर्च करने का कोई अर्थ नहीं है।
- राज्यपाल का चुनाव पूरी तरह से वैयक्तिक मामला है इसलिए इस चुनाव में भारी संख्या में मतदाताओं को शामिल करना राष्ट्रहित में नहीं है।
- एक निर्वाचित राज्यपाल स्वाभाविक रूप से किसी दल से जुड़ा होगा और वह निष्पक्ष व नि:स्वार्थ मुखिया नहीं बन पाएगा।
- राज्यपाल के चुनाव से अलगाववाद की धारणा पनपेगी, जो राजनीतिक स्थिरता और देश की एकता को प्रभावित करेगी।
- राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति की व्यवस्था से राज्यों पर केंद्र का नियंत्रण बना रहेगा।
- राज्यपाल का सीधा निर्वाचन, राज्य में आम चुनाव के समय एक गंभीर समस्या उत्पन्न कर सकता है।
- मुख्यमंत्री यह चाहेगा कि राज्यपाल के लिए उसका उम्मीदवार चुनाव लड़े, इसलिए सत्तारूढ़ दल का दूसरे दर्जे का सदस्यबतौर राज्यपाल चुना जाएगा।
नोट -: इसलिए अमेरिकी मॉडल, जहां राज्य का राज्यपाल सीधे चुना जाता है, को छोड़ दिया गया एवं कनाडा, जहां राज्यपाल को केंद्र द्वारा नियुक्त किया जाता है, संविधान सभा द्वारा स्वीकृत किया गया।
राज्यपाल के कार्य एंव शक्तियां
राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति
भारत के संविधान में राज्य में भी केंद्र की तरह संसदीय व्यवस्था स्थापित की गई है। राज्यपाल को नाममात्र का कार्यकारी बनाया गया
है, जबकि वास्तविकता में कार्य मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद करती है। दूसरे शब्दों में कहें तो राज्यपाल अपनी शक्ति, कार्य को
प्रख्यमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही कर सकता है; उन मामलों को छोड़कर जिनमें वह अपने विवेक का इस्तेमाल
कर सकता है। (मंत्रियों की सलाह के बगैर)।
- राज्य की कार्यकारी शक्तियां राज्यपाल में निहित होंगी।
- ये संविधान सम्मत कार्य सीधे उसके द्वारा या उसके अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा संपन्न होंगे (अनुच्छेद 154)।
- अपने विवेकाधिकार वाले कार्यों के अलावा (अनुच्छेद 163) अपने अन्य कार्यों को करने के लिए राज्यपाल को मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद से सलाह लेनी होगी।
- राज्य मंत्रिपरिषद की विधानमंडल के प्रति सामूहिक जिम्मेदारी होगी (अनुच्छेद 164)। यह उपबंध राज्य में राज्यपाल की संवैधानिक बुनियाद के रूप में है।
- ज्ञात रहें की अनुच्छेद 153 में राज्यपाल की स्थिति का प्रावधान है .
राज्यपाल की क्या योग्यताएं होनी चाहिए ?
भारत के संविधान के अनुसार अनुच्छेद 157 के तहत राज्यपाल की नियुक्ति का लेख मिलता है जिसके अनुसार राज्यपाल की निम्न योग्यताएं होना जरूरी है –
- वह व्यक्ति भारत का नागरिक हो,
- उस व्यक्ति की आयु 35 वर्ष से अधिक होनी चाहिए ,
- वह पहले से किसी लाभ के पद पर नही हो,
- यह व्यक्ति विधानसभा के सदस्य के रूप में चुनने के योग्य हो,
- वह व्यक्ति संसद या राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य न हो,
नोट -: राज्यपाल का जन्म से ही भारत का नागरिक होना आवश्यक नही है .
राज्यपाल का कार्यकाल
संविधान के अनुच्छेद 156[1] के अनुसार ” राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त अपना पद धारण करता है “ और राज्यपाल के कार्यकाल की अवधि 5 वर्ष तक होती है . किन्तु ध्यान रहें की अनुच्छेद 156 [2] के अनुसार राज्यपाल अपने कार्यकाल की अवधि से पहले भी अपना त्याग पत्र राष्ट्रपति को देकर अपने पद से मुक्त हो सकता है . राज्यपाल अपने कार्यकाल के पूर्ण होने के बाद भी उसी पद पर तब तक बने रह सकता है जब तक की कोई दूसरा व्यक्ति उसका पद ग्रहण नही करता .
राज्यपाल का वेतन और भत्ते
राज्यपाल के वेतन और भत्तों का निर्धारण संसद विधि के द्वारा ही किया जाता है , और 2008 में प्रस्तावित बजट के अनुसार राज्यपाल का वेतन और भत्ते 1 लाख 10 हजार रुए थे . वर्ष 2018 -19 के नये बजट पर राज्यपाल के वेतन और भत्ते को बढ़कर 3 लाख 50 हजार कर दिया गया है . राज्यपाल के वेतन और भत्ते सम्बन्धित अन्य जानकारी निम्न है –
- वर्तमान में राज्यपाल का वेतन और भत्ते 3,50,000 रूपये है [2018-19 बजट के अनुसार ,]
- राज्यपाल को नि: शुल्क आवास और अन्य भत्ते भी दिए जाते है जो की संसद के द्वारा निर्धारित किये जाते है .
- राज्यपाल को वेतन और भत्ते राज्य की संचित निधि से दिए जाते है .
- यदि एक ही व्यक्ति दो या दो से अधिक राज्यों का कार्यभार संभालता है [ राज्यपाल पद का ] तो उसे राज्यों का वेतन अनुपात में दिया जायेगा ,जिसे राष्ट्रपति के द्वारा निर्धारित किया जाता है [अनुच्छेद 158 {3 क}के अनुसार]
राज्यपाल को शपथ ग्रहण कौन करवाता है ?
भारत के संविधान के अनुच्छेद 159 के अनुसार राज्यपाल को अपना पद ग्रहण करने से पहले उस राज्य के उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश के द्वारा शपथ दिलवाई जाती है , अगर मुख्य न्यायाधीश अनुपस्थित हो तो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश के समक्ष शपथ दिलवाई जाती है . और इनके द्वारा हस्ताक्षर भी किये जाते है .
राज्यपाल की नियुक्ति किस प्रकार होती है ?
जैसा की आपको उपर बताया गया है की राजपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है और विस्तृत जानकारी निम्न है –
- राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार 5 वर्ष की अवधि के लिए की जाती है।
- राज्यपाल की नियुक्ति में सामान्यत: इस बात का ध्यान रखा जाता है कि नियुक्त किया जाने वाला व्यक्ति उसी राज्य का निवासी न हो जिसमें उसकी नियुक्ति होनी है।
- किसी राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति करते समय संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से परामर्श करने की परंपरा है, लेकिन इस परंपरा का बार-बार उल्लंघन किया गया है।
नोट -: भारत के संविधान में राज्यपाल को उसके पद से हटाने हेतु किसी भी प्रक्रिया का उल्लेख नही किया गया है .
राज्यपाल के कार्य एंव शक्तियां
राज्यपाल राज्य का प्रधान होता है और इसको राष्ट्रपति की ही भांति ही राज्य के अंतर्गत प्रयोग करने हेतु शक्तियाँ प्रदान की गयी है ,जिनका वर्णन नीचे दिया गया है –
- कार्यपालिका शक्तियाँ
- विधायी शक्तियाँ
- न्यायिक शक्तियाँ
- वित्तीय शक्तियाँ
- विवैकीय शक्तियाँ
- राज्यपाल की आपात शक्तियाँ
राज्यपाल की कार्यपालिका शक्तियाँ और कार्य
अनुच्छेद 154 [1]के अनुसार ” राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी और इसका उपयोग संविधान या स्वंय अथवा अधीनस्थ आधिकारियों के द्वारा किया जा सकता है “ अन्य जानकारी निम्न है –
- राज्य सरकार के सभी कार्यकारी कार्य औपचारिक रूप से राज्यपाल के नाम पर होते हैं।
- वह इस संबंध में नियम बना सकता है कि उसके नाम से बनाए गए और कार्य निष्पादित आदेश और अन्य प्रपत्र कैसे प्रमाणित होंगे।
- वह राज्य सरकार के कार्य के लेन-देन को अधिक सुविधाजनक और उक्त कार्य के मंत्रियों में आवंटन हेतु नियम बना सकता है।
- वह मुख्यमंत्री एवं अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है। वे सब राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करते हैं। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड तथा ओडिशा में राज्यपाल द्वारा नियुक्त जनजाति कल्याण मंत्री होगा.
- वह राज्य के महाधिवक्ता को नियुक्त करता है और उसका पारिश्रमिक तय करता है। महाधिवक्ता का पद राज्यपाल के प्रदिपर्यंत रहता है।
- वह राज्य निर्वाचन आयुक्त को नियुक्त करता है और उसकी सेवा शर्ते और कार्यावधि तय करता है हालांकि राज्य निर्वाचन आयुक्त को विशेष मामलों या परिस्थितियों में उसी तरह हटाया जा सकता है जैसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को।
- वह राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को नियुक्त करता है। लेकिन उन्हें सिर्फ राष्ट्रपति ही हटा सकता है
- वह मुख्यमंत्री से प्रशासनिक मामलों या किसी विधायी प्रस्ताव की जानकारी प्राप्त कर सकता है।
- यदि किसी मंत्री ने कोई निर्णय लिया हो और मंत्रिपरिषद ने – उस पर संज्ञान न लिया हो तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री से उस वह राष्ट्रपति से राज्य में संवैधानिक आपातकाल के लिए मामले पर विचार करने की मांग सकता है।
- वह राष्ट्रपति से राज्य में संवैधानिक आपातकाल के लिए मामले पर विचार करने की मांग सकता है। सिफारिश कर सकता है। राज्य में राष्ट्रपति शासन के दौरान उसकी कार्यकारी शक्तियों का विस्तार राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में हो जाता है।
- वह राज्य के विश्वविधालयों का कुलाधिपति होता है वह राज्य के विश्वविधालयों के कुलपतियों की नियुक्ति करता है।
राज्यपाल की विधायी शक्तियाँ
राज्यपाल , राज्य विधानमंडल का एक अभिन्न अंग है उसे विधायी शक्तियों और कार्यों में निम्न शक्तियाँ मिलती है –
- वह राज्य विधान सभा के सत्र को आहूत या सत्रावसान और विघटित कर सकता है।
- वह विधानमंडल के प्रत्येक चुनाव के पश्चात पहले और प्रतिवर्ष के पहले सत्र को संबोधित कर सकता है।
- वह किसी सदन या विधानमंडल के सदनों को विचाराधीन विधेयकों या अन्य किसी मसले पर संदेश भेज सकता है।
- जब विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद खाली हो तो वह विधानसभा के किसी सदस्य को कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए नियुक्त कर सकता है।
- राज्य विधान परिषद् के कुल सदस्यों के छठे भाग को वह नामित कर सकता है, जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारिता आंदोलन और समाज सेवा का ज्ञान हो या इसका व्यावहारिक अनुभव हो।
- वह राज्य विधानसभा के लिए एक आंग्ल-भारतीय समुदाय से एक सदस्य की नियुक्ति कर सकता है।
- विधानसभा सदस्य की निरर्हता के मुद्दे पर निर्वाचन आयोग से विमर्श करने के बाद वह इसका निर्णय करता है।
- राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल के पास भेजे जाने पर:
- वह विधेयक को स्वीकार कर सकता है, या
- स्वीकृति के लिए उसे रोक सकता है, या
- विधेयक को (यदि यह धन-संबंधी विधेयक न हो) विधानमंडल के पास पुनर्विचार के लिए वापस कर सकता है ,
- वह राज्य के लेखों से संबंधित राज्य वित्त आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट को राज्य विधानसभा के सामने प्रस्तुत करता है।
राज्यपाल की न्यायिक शक्तियाँ
राज्यपाल की न्यायिक शक्तियां एवं कार्य इस प्रकार हैं:
- राज्य के राज्यपाल को उस विषय संबंधी, जिस विषय पर उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, किसी विधि के विरुद्ध किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराए गए किसी व्यक्ति के दण्ड को क्षमा, उसका प्रविलंबन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलंबत, परिहार या लघुकरण की शक्ति होगी।
- राष्ट्रपति राज्यपाल द्वारा संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में राष्ट्रपति से विचार किया जाता है।
- वह राज्य उच्च न्यायालय के साथ विचार कर जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति, स्थानांतरण और प्रोन्नति कर सकता है।
- वह राज्य न्यायिक आयोग से जुड़े लोगों की नियुक्ति भी करता है (जिला न्यायाधीशों के अतिरिक्त) इन नियुक्तियों में वह राज्य उच्च न्यायालय और राज्य लोक सेवा आयोग से विचार करता है।
राज्यपाल की वित्तीय शक्तियाँ
राज्यपाल की वित्तीय शक्तियां एवं कार्य इस प्रकार हैं:-
- वह सुनिश्चित करता है कि वार्षिक वित्तीय विवरण (राज्य-बजट) को राज्य विधानमंडल के सामने रखा जाए।
- धन विधेयकों को राज्य विधानसभा में उसकी पूर्व सहमति के बाद ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
- बिना उसकी सहमति के किसी तरह के अनुदान की मांग नहीं की जा सकतीं।
- वह किसी अप्रत्याशित व्यय के वहन के लिए राज्य की आकस्मिकता निधि से अग्रिम ले सकता है।
राज्यपाल की विवेकीय शक्तियाँ
संविधान के अनुच्छेद-16 3 (1) के अन्तर्गत राज्यपाल को विवेकीय शक्तियाँ प्रदान की गई हैं जिसका प्रयोग वह मंत्रिपरिषद के परामर्श के बिना कर सकता है। दूसरे शब्दों में वह कुछ कार्य मुख्यमंत्री की सलाह के बिना भी करता है जो उसकी विवेकीय शक्ति के अन्तर्गत आते हैं। राज्यपाल की विवेकीय शक्ति को दो वर्गो यथा; संविधान में स्पष्टतः उपबन्धित विवेकीय शक्ति तथा अप्रत्यक्ष रूप में निहित विवेकीय शक्ति के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लिखित राज्यपाल की विवेकीय शक्तियाँ इस प्रकार हैं। यथा-
- अनु. 200 के अनुसार राज्यपाल राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए स्वविवेक से आरक्षित कर सकता है।
- स्वविवेक से राज्यपाल विधानमण्डल द्वारा पारित किसी विधेयक को एक बार पुनर्विचार के लिए वापस कर सकता है (अनु. 200)।
राज्यपाल की आपात शक्तियाँ
भारत के संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार, राज्यपाल के पास राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट भेजने की शक्ति है और यदि राज्य की सरकार संविधान के नियमों के अनुसार नहीं चलती है तो वह राष्ट्रपति शासन लगाने का अनुरोध कर सकता है। .
अध्यादेश जारी करने की शक्ति
अनु. 213 के अन्तर्गत राज्यपाल को अध्यादेश (Ordi-nance) जारी करने की शक्ति दी गई है। राज्यपाल इस शक्ति का प्रयोग उस समय करता है जबकि उस राज्य की विधान सभा तथा यदि उस राज्य में विधान परिषद भी हो तो. विधानमण्डल के दोनों सदन सत्र में नहीं होते हैं और राज्यपाल को यह विद्यास हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान है कि जिनके कारण शीघ्र कार्यवाहीआवश्यक है।
राज्यपाल की अध्यादेश जारी करने की शक्ति राज्य सूची तथा समवर्ती सूची के विषयों तक विस्तृत है किन्तु निम्न विषयों के सम्बन्ध अध्यादेश जारी करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति आवश्यक है। यथा-
- जिन विषयों पर विधानमण्डल में विधेयक पेश करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति लेना आवश्यक है।
- जिन विषयों से सम्बन्धित विधेयक को राज्यपाल राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखता है।
राज्यपाल द्वारा जारी अध्यादेश का वही बल और प्रभाव (force and effect) होता है जो राज्य विधान मण्डल द्वारा निर्मित विधि का होता है।
राज्यपाल की अन्य शक्तियाँ
- राज विधायिका द्वारा पारित विधेयक राजपाल के हस्ताक्षर के बाद ही कानून बना सकता है।
- संविधान का अनुच्छेद 174 राज्यपाल को विधायिका के किसी भी सदन के सत्र को बुलाने और संबोधित करने का अधिकार देता है।
- राज्यपाल के पास विधान सभा को भंग करने का भी अधिकार होता है।
- संविधान के अनुच्छेद 175 के अनुसार राज्यपाल विधानमंडल में लंबित किसी भी विधेयक के संबंध में संदेश भेज सकता है।
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 213 के तहत, विधान सभा सत्र में नहीं है और यदि किसी विशेष कानून की आवश्यकता है, तो राज्यपाल एक अध्यादेश जारी कर सकता है।
- इस अध्यादेश में कानूनी शक्ति है, जो 6 सप्ताह तक प्रभावी रहती है, 6 महीने के भीतर विधानसभा में अनुमोदन प्राप्त करना आवश्यक होता है .
राज्यपाल से सम्बन्धित अनुच्छेद कौनसे है ?
अगर आप राज्यपाल के सम्बन्ध में मुख्य -मुख्य अनुच्छेद के बारे में जानना चाहते है तो उसके लिए आपको नीचे विवरण दिया जा रहा है –
अनुच्छेद | विषय-वस्तु |
---|---|
153 | राज्यों के राज्यपाल |
154 | राज्य की कार्यपालक शक्ति |
155 | राज्यपाल की नियुक्ति |
156 | राज्यपाल का कार्यकाल |
157 | राज्यपाल के नियुक्त होने के लिए अर्हता |
158 | राज्यपाल कार्यालय के लिए दशाएं |
159 | राज्यपाल द्वारा शपथ ग्रहण |
160 | कतिपय आकस्मिक परिस्थितियों में राज्यपाल के कार्य |
161 | राज्यपाल को क्षमादान आदि की शक्ति |
162 | राज्य की कार्यपालक शक्ति की सीमा |
163 | मंत्रीपरिषद का राज्यपाल को सहयोग तथा सलाह देना |
164 | मंत्रियों से संबंधित अन्य प्रावधान, जैसे-नियुक्ति, कार्यकाल तथा वेतन इत्यादि |
165 | राज्य का महाधिवक्ता |
166 | राज्य की सरकार द्वारा संचालित कार्यवाही |
167 | राज्यपाल को सूचना देने इत्यादि का मुख्यमंत्री का दायित्व |
174 | राज्य विधायिका का सत्र, सत्रावसान तथा उसका भंग होना |
175 | राज्यपाल का राज्य विधायिका के किसी अथवा दोनों सदनों को संबोधित करने अथवा संदेश देने का अधिकार |
176 | राज्यपाल द्वारा विशेष संबोधन |
200 | विधेयक पर सहमति [राज्यपाल द्वारा विधायिका द्वारा पारित विधेयकों पर स्वीकृति प्रदान करना ] |
201 | राज्यपाल द्वारा विधयेक को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख लेना |
213 | राज्यपाल की अद्यादेश जारी करने की शक्ति |
217 | राज्यपाल की उच्च न्यायालयके न्यायधीशों की नियुक्ति के मामलों में राष्ट्रपति द्वारा सलाह लेना |
233 | राज्यपाल द्वारा जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति |
234 | राज्यपाल द्वारा न्यायिक सेवा के लिए नियुक्ति [ जिला न्यायाधीशों को छोड़कर] |
राज्यपाल की शक्तियाँ और कार्य नोट्स पीडीएफ
अगर आप राज्यपाल के कार्य और शक्तियों से सबंधित नोट्स के पीडीएफ डाउनलोड करना चाहते है तो नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक करे –
FAQs – राज्यपाल के कार्य एंव शक्तियां
किस अनुच्छेद के तहत यह उपबंधित है की राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर सकता है ?
अनुच्छेद 200 के तहत
राज्यपाल को किस अनुच्छेद के तहत अध्यादेश जारी करने की शक्ति दी गयी है ?
अनुच्छेद 213 के तहत
राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति किन विषयों से सम्बन्धित है ?
जिन पर राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है
विधान परिषद के कितने सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत किये जाते है ?
कुल सदस्य संख्या का 1/6 भाग
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